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25 Dec 2024, Wed

पड़ताल: क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए सत्याग्रह में शामिल हुए थे?

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय बांग्लादेश दौरे पर शुक्रवार को ढाका पहुंचे। प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश की स्वतंत्रता के 50 वर्ष और संस्थापक शेख़ मुजीबुर रहमान की जन्मशताब्दी के मौक़े पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने गए। प्रधानमंत्री
मोदी ने ढाका के नेशनल परेड स्कवॉयर में आयोजित समारोह समारोह में
बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़े गए वर्ष 1971 के युद्ध को याद किया। पीएम
ने कहा ”बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम को भारत के कोने-कोने से, हर
पार्टी से, समाज के हर वर्ग से समर्थन प्राप्त था। तत्कालीन प्रधानमंत्री
श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रयास और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका सर्वविदित है।
उसी दौर में छह दिसंबर 1971 को अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम न केवल
मुक्ति संग्राम में अपने जीवन की आहूति देने वालों के साथ लड़ रहे हैं, हम
इतिहास को भी एक नई दिशा देने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं।” मोदी ने कहा, ‘‘बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष में शामिल होना मेरे जीवन के भी पहले आंदोलनों में से एक था। मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी जब मैंने और मेरे कई साथियों ने बांग्लादेश के लोगों की आजादी के लिए सत्याग्रह किया था और उस वक्त जेल भी जाना पड़ा था।’’

प्रधानमंत्री मोदी के इसी वक्तव्य पर सोशल मीडिया में एक बहस छिड़ी हुई है। विपक्षी नेताओं के मोदी के दावे को ‘झूठा’ करार दिया है। साथ ही उनके इस वक्तव्य का जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा, ‘‘ अंतरराष्ट्रीय ज्ञान : हमारे
प्रधानमंत्री बांग्लादेश को भारतीय ‘फर्जी खबर’ का स्वाद चखा रहे हैं। हर
कोई जानता है कि बांग्लादेश को किसने आजाद कराया।’’

International education: our PM is giving Bangladesh a taste of Indian “fake news”. The absurdity is that everyone knows who liberated Bangladesh. https://t.co/ijjDRbszVd

— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 26, 2021

पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने 1971 में पाकिस्‍तानी सेना के ऐतिहासिक सरेंडर पर एक कार्टून साझा क‍िया जिसमें भारतीय जनरल की जगह मोदी बैठे दिख रहे हैं।

Entire Political Science by Narendra Modi. pic.twitter.com/LvJvJ4JfpY

— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 26, 2021

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने ट्वीट क‍िया, ‘बांग्लादेश की आजादी में भारत सरकार तो बांग्लादेश के साथ थी। युद्ध तो पाकिस्तान से हो रहा था फिर मोदी जी को जेल भेजा किसने? भारत ने या पाकिस्तान ने?’

बांग्लादेश की आज़ादी में भारत सरकार तो बांग्लादेश के साथ थी।
युद्ध तो पाकिस्तान से हो रहा था फिर मोदी जी को जेल भेजा किसने?
भारत ने या पाकिस्तान ने?

— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) March 26, 2021

यह तथ्य आए सामने

पड़ताल में हमे एसोसिएटेड प्रेस के आर्काइव में 2 अगस्त, 1971 और 12 अगस्त, 1971 की वीडियो फुटेज मिली। जिसमें बांग्‍लादेश की आजादी के समर्थन में 25 मई 1971 को जनसंघ की एक रैली की फुटेज है।

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक जनसंघ ने अगस्त 1971 में बांग्लादेश सत्याग्रह शुरू किया था। जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने सत्याग्रह को संबोधित किया था। यह 12 दिन तक चला था। इस दौरान जन संघ के हजारों कार्यकर्ता गिरफ्तार भी हुए थे। सत्याग्रह के आखिरी दिन 1200 महिलाओं और बच्चों समेत करीब 10 हजार कार्यकर्ता जेल गेए थे।

इकोनॉमिस्ट टाइम्स ने अपने एक लेख में बांग्लादेश सत्याग्रह के दौरान अटल बिहारी के संबोधन की एक तस्वीर को प्रकाशित किया है। इस तस्वीर का जिक्र करते हुए नीचे लिखा गया है, ‘As Jana Sangh president, Vajpayee addresses a mammoth rally in Delhi in August 1971, demanding the immediate recognition of Bangladesh by the Indian government.

As Jana Sangh president, Vajpayee addresses a
mammoth rally in Delhi in August 1971, demanding the immediate
recognition of Bangladesh by the Indian government. (ET Image)

6 दिसंबर 1971 को भारत की संसद में अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने संबोधन में कहा था, ”देर से ही सही बांग्लादेश को मान्यता प्रदान करके, एक सही कदम उठाया गया है। इतिहास को बदलने की प्रक्रिया हमारे सामने चल रही है। और नियति ने इस संसद को, इस देश को ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में रख दिया है जब हम न केवल मुक्ति संग्राम में अपने जीवन की आहूति देने वालों के साथ लड़ रहे हैं, लेकिन हम इतिहास को एक नई दिशा देने का भी प्रयत्न कर रहे हैं। आज बांग्लादेश में अपनी आजादी के लिए लड़ने वालों और भारतीय जवानों का रक्त साथ-साथ बह रहा है। यह रक्त ऐसे संबंधों का निर्माण करेगा जो किसी भी दबाव से टूटेंगे नहीं, जो किसी भी कूटनीति का शिकार नहीं बनेंगे। बांग्लांदेश की मुक्ति अब निकट आ रही है।”

साल 2015 में बांग्लादेश ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड से सम्मानित किया था। हालाँकि उस वक्त वाजपेयी के अस्वस्थ होने के कारण यह सम्मान प्राप्त करने के बांग्लादेश नहीं जा सके थे इसीलिए यह सम्मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा गया था। 

भाजपा आईटी सेल हेड ने पुरस्कार के मसौदा प्रशस्ति पत्र साझा किया है जिसके मुताबिक, ‘मुक्ति संग्राम (1991)
की शुरुआत से ही वाजपेयी ने बांग्लादेश की आजादी के समर्थन में कड़ा रख
अपनाया। उन्होंने भारतीय जन संघ के तत्कालीन अध्यक्ष और लोकसभा सदस्य के
तौर पर बांग्लादेश के लोगों के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय एवं
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चलाई थी।’

Was Prime Minister Modi part of satyagrah organised by Jana Sangha for recognition of Bangladesh?

Yes, he was.

A citation awarded by Bangladesh to Vajpayee ji speaks of the rally.

PM Modi, in a book authored in 1978, also wrote about going to Tihar during Bangladesh satyagrah! https://t.co/nihrAIjjD7 pic.twitter.com/d0iTELWlpN

— Amit Malviya (@amitmalviya) March 26, 2021

बांग्लादेश की ओर से यह सम्मान अपने देश की स्वतंत्रता के लिए सहयोग करने
वाले लोगों को दिया जाता है। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को
भी बांग्लादेश लिबरेशन वार ऑनर अवॉर्ड दिया गया था। इंदिरा गांधी की ओर से
उनकी बहू और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2012 में यह सम्मान ग्रहण
किया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी यह सम्मान मिला चुका है।

इन तमाम तथ्यों से यह बात तो स्पष्ट है कि बांग्लादेश के लिए जनसंघ ने आन्दोलन किया था और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया गया था। 

वहीं 2015 में बांग्लादेश से इस सम्मान को लेते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहली बार बांग्लादेश के लिए आन्दोलन में अपनी सहभागिता का जिक्र किया था। पीएम मोदी ने कहा कि आज के इस अवसर पर ये सबसे बड़े आनंद का विषय है कि उस युद्ध की स्मृति में अवार्ड दिया जा रहा है और महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों से दिया जा रहा है, जो स्वंय एक गौरवशाली मुक्ति योद्धा रहे हैं और उनके हाथों से सम्मान हो रहा है, ये अपने आप में एक बड़े गौरव की बात है। और दूसरी बात बंग-बंधु, जिनके नेतृत्व में, जिनके मार्गदर्शन में, बांग्लादेश ये लड़ाई लड़ा और जीता, उनकी बेटी की उपस्थिति में ये सम्मान प्राप्त हो रहा है। और तीसरी एक बात जो शायद मैंने पहले कभी बताई नहीं है वो मुझे आज बताते हुए जरा गर्व होता है।

उन्होंने कहा कि मैं राजनीतिक जीवन में तो बहुत देर से आय़ा। ’98 के आखिरी-आखिरी काल खंड में आय़ा लेकिन एक नौजवान एक्टिविस्ट के नाते, एक युवा वर्कर के रूप में जो कि मैं राजनीतिक दल का सदस्य नहीं था, मैं भारतीय जनसंघ का कभी कार्यकर्ता नहीं रहा लेकिन जब अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने बांग्लादेश के निर्माण के समर्थन के लिए एक सत्याग्रह किया और उस सत्याग्रह में एक स्वयंसेवक के रूप में मैं मेरे गांव से दिल्ली आया था। जो एक गौरवपूर्ण लड़ाई आप लोग लड़े थे और जिसमें हर भारतीय आपके सपनों को साकार होते देखना चाहता था, उन करोड़ों सपनों में एक मैं भी था, उस समय उन सपनों को देखता था।

वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने इकोनॉमिक टाइम्स पर 2015 में प्रकाशित अपने आर्टिकल में बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह में नरेंद्र मोदी की मौजूदगी का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि नरेंद्र मोदी 1971 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में दिल्ली में जनसंघ के सत्याग्रह में शामिल हुए थे, मोदी को थोड़े समय के लिए तिहाड़ जेल में रखा गया था।

For all the controversy over Narendra Modi going to jail for an agitation in support of Bangladesh, read this by ⁦@NilanjanUdwin⁩ from 2015.

Here’s the link to the full Economic Times piece: https://t.co/1IBwnmii0L pic.twitter.com/2BzCjWk2p9

— Devjyot Ghoshal (@DevjyotGhoshal) March 26, 2021

नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब ‘Narendra Modi: The Man, the Times’ में भी इसका जिक्र मिलता है

पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह नरेंद्र मोदी की लिखी किताब ‘संघर्ष मा गुजरात’ का कवर और बैक कवर शेयर किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस किताब को 1978 में लिखा था, उस वक्त उनकी उम्र करीबन 22 वर्ष थी। यह किताब आपातकाल में गुजरात की भूमिका को लेकर लिखी है। इस किताब में लेखक नरेंद्र मोदी का परिचय देते हुए गुजराती में एक लाइन लिखी है कि ‘बांग्लादेश के सत्याग्रह के समय तिहाड़ जेल होकर आए।’

पीएम @narendramodi ने बांग्लादेश के निर्माण के लिए सत्याग्रह में भाग लेने और इसके लिए जेल जाने का आज ढाका में ज़िक्र क्या किया, उनके आलोचकों के पेट में दर्द हो गया। संदेह का माहौल खड़ा किया जाने लगा! इन आलोचकों को 1978 में प्रकाशित इस किताब के बैक कवर को देखकर मायूस होना पड़ेगा! pic.twitter.com/8QBcUQD5E4

— Brajesh Kumar Singh (@brajeshksingh) March 26, 2021

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