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25 Dec 2024, Wed

मैरिटल रेप: पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी उठाएंगी नुकसान, जानिए इस बारें में

 

कमल कुमार सिंह। दिल्ली हाईकोर्ट में कथित मैरिटल रेप को आईपीसी की धारा 375 के दायरे में लाने के लिए एक पीआईएल दाखिल हुआ है। अर्थात पति यदि पत्नी से जबरजस्ती सेक्स कर लेता है तो उसे भी रेप माना जाए। 

कुछ आगे लिखने से पहले हमें समझना होगा कि रेप क्या है? रेप की अवधारणा समाज मे बिल्कुल अलग है और कोर्ट कानून में बिल्कुल अलग। थोड़ा लंबा है, लेकिन पढ़ लेंगे तो शायद समझ पाएंगे कि समाज में स्त्रियों और पुरुषों की की दशा क्या है।


जब कोई शख्स जबरदस्ती या बलपूर्वक किसी स्त्री से उसकी इच्छा के विरुद्ध सेक्स करता है तो उसे बलात्कार कहा जाता है, ऐसा समाज का मानना है, जो घृणित भी है और निसंदेह निंदनीय भी। आम तौर पर बलात्कार की परिभाषा समाज मे यही है। जिस पर बलात्कारी का ठप्पा लगता है उसे समाज बिना कुछ आगे पीछे सोचे बलात्कारी मान लेता है जो सिर्फ हवश की भूख मिटाने के लिए किसी स्त्री का बलपूर्वक उसका मान मर्दन कर देता है।

लेकिन क्या ये वास्तविक है, जी नहीं। कैसे? तो आइये समझते हैं।  कानून में बलात्कारी का तमगा और कई तरीकों से लग सकता है जिसे समाज वही बलपूर्वक वाला पिचाश बलात्कारी समझता है। 

आईपीसी की धारा 375 में बलात्कार की कई परिभाषाएं है जैसे, नशा देकर किसी स्त्री के साथ सेक्स करना, किसी अधिकारी द्वारा अपने प्रभाव में लेकर अपने जूनियर महिला के साथ सेक्स करना, सरकारी अधिकारी का अपने प्रभाव  का इस्तेमाल करके किसी महिला के साथ सेक्स करना और शादी का प्रलोभन या झांसा देकर सेक्स करना, किसी पागल या चित्त विकृत स्त्री के साथ सेक्स करना आदि। इन सब के लिए 375 में ही अलग अलग सेक्शन हैं।  

इन सभी मे खास बात ये है कि स्त्री एक मात्र गवाही काफी है किसी पुरुष को जेल भेजने के लिए, न किसी गवाह की जरूरत है न किसी सबूत की। बलात्कार का इल्जाम स्त्री अपने उम्र के किसी भी पड़ाव पर लगा सकती है अर्थात यदि उसके साथ इनमे कोई कृत्य 10 साल पहले हुआ हो या न हुआ हो, तो भी आपको या किसी भी पुरूष को आज भी कठघरे के खड़ा कर सकती है, उसे जेल भेज सकती है, इस केस में जमानत भी नहीं मिलती। खासकर लोअर कोर्ट से तो बिल्कुल भी नही और हाईकोर्ट जाने की सबकी हैसियत होती नही।   

उपयुर्क्त में सभी को घृणित माना जा सकता है सिवाए शादी के झांसा देकर सेक्स करना, ये बलात्कार के परिभाषा का सबसे बड़ा लूप होल है। तो आखिर ये लूप होल क्यों है इसे समझने के लिए नीचे कुछ बिंदु है। उससे पहले झाँसा एक ऐसा शब्द है जिसे समझने की जरूरत है।   

क्या कोई पुरूष किसी स्त्री को झाँसा दे सकता है? बिल्कुल दे सकता है। इसके लिए कानून भी है कि यदि कोई स्त्री 18 साल से कम उम्र की है तो कानून की नजर में  यह माना जाता की वह बालिग नही है, परिपक्व नही है और उसके अंदर निर्णय लेने की क्षमता नही है, इस उम्र में वह अपना बुरा भला नही समझ सकती और उसकी सहमति, सहमति नही मानी जा सकती यदि कोई पुरुष उससे कहता है कि वह उससे शादी करेगा और इस आधार पर स्त्री संभोग के लिए हाँ कर देती है अर्थात सहमति (कंसेंट) प्रदान करती है तो इस प्रकार की सहमति से बने सम्बन्ध पहले पास्को और फिर बालात्कार की परिभाषा में आतें है जो कि जायज भी है।

कानून की परिभाषा में शादी की उम्र 18 साल से ऊपर का रखा है, जिसके मुताबिक 18 साल से ऊपर की स्त्री परिपक्व होती है। अपना भला बुरा समझ सकती है, निर्णय ले सकती है। लेकिन इसमें भी पेंच यह है कि यह स्त्री जो 18 साल ऊपर की है, क़ानून की नजर में परिपक्व है, उसे भी कानून यह अधिकार देता है कि वह भी शादी का झांसा देने का केस उम्र के किसी भी पडाव में कर सकती और बलात्कार का अभियुक्त किसी भी पुरुष को बना सकती है, ऐसे में फिर पास्को जैसे कानून क्यो है? पास्को जैसे कानून की क्या महत्ता है? क्या कानून स्त्रियों को ताउम्र नासमझ, मानसिक रूप से कमजोर या अक्षम समझता है? इस हिसाब से तो माइनर स्त्री के कानून ही हटा दिए जाने चाहिए। एक स्त्री जो कि परिपक्व है और जब तक उसका मन सेक्स का नही है वो बस इस आधार पर सेक्स करती है कि उक्त पुरूष उससे शादी करेगा? क्या ये एक ट्रेडिंग नही है? एक तरह का व्यापार नही है?  Give and Take नही है? 

यह कुछ उस तरह का नही है की एक कोई वेश्या 20 हजार रुपये में आपसे सेक्स करने को तैयार हो? 20 हजार मिले तो ठीक अन्यथा बलात्कार का केस, तो इसी तरह से शादी हुई तो ठीक अन्यथा बलात्कार का केस। मै इसे प्रोस्टीट्यूशन से अलग बिल्कल नही मानत , बल्कि प्रोस्टीट्यूशन करने वाली स्त्री ज्यादा डिग्निटीफूल है। क्योंकि पहले केस में पुरूष से शादी से पहले सेक्स के बदले पूरी उम्र की गारंटी की अपेक्षा है जबकि दूसरे केस में मात्र कुछ हजार रुपये।  

जब कानून के मुताबिक बालिग होने के बावजूद भी महिलाएं अक्षम हैं। आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर तो सरकार समानता और महिला सशक्तिकरण का ढोल क्यों बजाती है? कर्तव्यों और जिम्मेदारी में असमानता और आर्थिक लाभ, मानसिक लाभ, अधिकारिता में समानता ?? इससे बड़ा दोगलापन का उदाहरण पूरे विश्व में नहीं हो सकता।

प्रेटिक्स ऑफ मैरिज (शादी का झांसा) के मुकदमों को देखा गया है कि इस तरह के मामले प्रेमी जोड़ों के ही होते हैं, अगर इसे जेंडर न्यूट्रल कर दें तो लड़कियों पर भी मुकदमे दर्ज होंगे। क्योंकि प्रेम सम्बन्ध के मामले में सिर्फ लड़के धोखा नहीं देते हैं बल्कि लड़कियां भी ऐसा करती हैं। लेकिन लड़कों के पास कोई रेडिमि नही होती जबकि लड़की के पास 376 का अचूक हथियार है इससे न सिर्फ लड़के का भविष्य बर्बाद होता है बल्कि उसका परिवार भी तबाह हो जाता है। 

अगर आईपीसी की धारा 375 में कानून का ये सेक्शन हटा दिया जाए या इसे जेंडर न्यूट्रल कर दिया जाए क्योंकि 90 फीसद रेप केस इसी श्रेणी के दर्ज होते है और पुलिस कोर्ट का टाइम बर्बाद करते हैं वही  जिनके साथ वास्तव में इस तरह का अमानवीय अत्याचार होता है वो पीड़ित निरीह की तरह न्याय की बाट जोहती रह जाती है।  क्या ये उन लड़कियों के साथ अन्याय नही है जिनके साथ वास्तव में अमानवीय अत्याचार हुआ है? जरा सोचिए की क्या दोनो की मानसिक स्थिति समान है? 

यही नही, कोई लड़की आपको पसंद करती है और आपने उससे मना कर दिया तब भी वह आप पर प्रेटिक्स ऑफ मैरिज का केस करने को स्वतंत्र है। आजकल तो प्रेम सम्बन्ध में पीछे हटने या प्रेम प्रस्ताव को मना करने पर लड़कों के ऊपर तेजाब भी फेंका जाता है जबकि लकड़ियों के लिए केस करना सबसे सुरक्षित है।

इसका कारण कुछ भी हो सकता है, पर्सनल वेंडटा, सायको नेस, ऑब्ब्सेशन, या पैसे का एक्सटॉर्शन, कुछ भी। सबसे बड़ा कारण की इनकी पहचान उजागर नही होती है इसके लिए कानून ने इन्हें शील्ड दे रखा है। यहां तक कि लड़की चाहे तो पुलिस में लिखित दे अपने परिवार माँ बाप तक से छुपा सकती है और कानून इस बारे में उसके माँ बाप से भी नही कुछ पूछ सकता।

हम लोग आज फ्री सेक्स, लिव इन, वन नाइट स्टैंड, एफ बड्डी के युग में हैं, जहां शादी से पहले सेक्स सामान्य सी बात हो गया है, तो किसी भी मोड़ पर जब अनबन हो तो केस करा दो। अधिकांश केस इसी तरह के होते हैं तो लड़को को थोड़ा सावधान होने की जरूरत है क्योंकि अधिकांश लड़को को कानून की बेसिक जानकारी नही होती है  वहीं दूसरी ओर बस एक हेल्पलाइन घुमाना हैं। 

आप किसी भी मैट्रीमोनी साईट पर सर्वे कीजिए, एक 15 लाख सालाना कमाने वाली लड़की की भी इच्छा किसी करोडपति या ज्यादा रुपए कमाने वाले पति की होती है जबकि लड़कियां अपने उस पति के घर में जाती हैं, बाईडिफाल्ट उसके आधे प्रोपर्टी की मालकिन भी बन जाती है। किसी भी लड़की के सपने में बुलेट पर बैठा राजकुमार ही आता है, साईकल पर बैठा मजदूर नहीं। लड़कियों को डॉक्टर-इंजीनियर चाहिए अर्थात ज्यादा पैसा कमाने वाला लड़का चाहिए और उसके माँ-बाप लाकर भी देते हैं उसके बाद यह भी कहा जाता है कि समाज में दहेज बहुत बढ़ गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट दहेज कानून के बढ़ते फर्जी मामलों में कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे ‘कानूनी आतंकवाद’ कह चुका है।

MEET ARVIND BHARTI

He died by suicide when he was just 31

His wife Richa implicated him in false #498A

He spent 8 yrs to prove his innocence

Then after divorce, Richa implicated him in a #FalseRape case. He was JAILED

As #MaritalRape law comes, we wud see many Arvinds pic.twitter.com/61sGcKHPyQ

— Deepika Narayan Bhardwaj (@DeepikaBhardwaj) January 13, 2022

अब यहाँ लोग एक तर्क और रखते हैं कि लड़की डॉक्टर-इंजीनियर हो, तब भी लडके को दहेज़ देना होता है। अच्छा तर्क है, मान्य है, होना भी चाहिए। तो लड़की डॉक्टर हो या इंजीनियर आती लड़के के घर है, उसी लड़के जिससे शादी होने वाली डाक्टर या इंजीयर ही होगा या कुछ ज्यादा। उस लड़के से सवाल पूछा जाता है कि “तुम्हारा अपना घर है, कितनी जमींन है, कितनी प्रोपर्टी है, सैलरी कितनी है, फ्यूचर प्लान क्या है? 

जब यह सब लड़के से ही जानना है तो दहेज का रोना क्यों? हालांकि कानून मानता है तो कानून के बारे में ऊपर भी लिखा है कि भारतीय कानून से जादा दोगला कानून पुरे विश्व का नहीं। अपनी बारहवीं पास लड़की की किसी बारहवीं पास लड़के ही शादी कीजिए। उससे उसकी जमीन, घर का सवाल मत पूछिए क्योंकि अगर लड़के का घर है तो लड़की का भी नहीं है। कानून ने तो लडकियों को भी माँ बाप की प्रोपर्टी में अधिकार दिया है, कितनी लड़कियां ये प्रोपर्टी लेकर अपने ससुराल आती है जबकि कानूनन उसमे पति का हिस्सा नहीं होता है। वहीं शादी के बाद लड़कियां अपने पति के जायजाद में हिस्सेदार होती हैं।

मेरा व्यक्तिगत मत है की पितृ सतात्मक समाज खत्म होना चाहिए और ये लडकियाँ ही कर सकती है। इसके लिए हर लड़की को खुद को कमजोर दिखा सहानभूति बटोरने की बजाए कुछ काम करना होगा, मेहनत करना होगा, करियर बनाना होगा, जहाँ सिर्फ लड़के ही लड़कियों के लिए घर न बनाएं बल्कि लड़कियां भी पति को अपने घर ला सके, उसे खुश रख सके। साथ ही लड़के भी घरेलू कामकाज में उनका हाथ बंटाएं। आखिर पत्नी की जेबखर्ची की उम्मीद हमेशा पति से क्यों ही हो, कभी पत्नी खुद ही इसे अपनी जरूरत और जिम्मेदारी मान कर निभाए। एक परिवार की नींव में पति-पत्नी दोनों का योगदान होता है।

बात अब मैरिटल रेप की, कथित मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने की याचिका पर दिल्ली
हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार कानून की
नज़र में अपराध नहीं है। यानी अगर पति अपनी पत्नी की मर्जी के बिना उससे
जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता है।

सबसे पहले कैसे पता चलेगा की पति ने जबरजस्ती की या पत्नी का कंसेंट था? कल रात कंसेंट था आज दिन में पति पत्नी का झगडा हुआ किसी बात को लेकर और आने वाले कल में पत्नी थाने पहुँच कह देती है कि उसका कंसेंट नहीं था और पति के ऊपर वही 375 लागू होगा जिसे समाज घृणित समझता है तो इस स्थिति में पति क्या करे?

This young man Anil Meena from Kota ended life as his wife tortured him & his family threatening to implicate them in false cases. She remained at her parents house mostly. He left a suicide video pleading for justice

Get law for #MaritalRape & thousands of Anil Meenas will die pic.twitter.com/nIxt3iMcXA

— Deepika Narayan Bhardwaj (@DeepikaBhardwaj) February 4, 2022

सबसे बड़ी बात की इस कानून में भी जेंडर इक्विलिटी की बात नही हो रही है, यानि किसी रात पति का सेक्स का मन नही है, उसके मना करने पर पत्नी जबर्दस्त करती है तो पति कहाँ जाएगा। यह भी संभव है कि पति की उस ‘न’ की वजह से दोनों के बीच झगड़ा हो और पत्नी अगले दिन मैरिटल रेप करवा दे।

वहीं जब मैरिटल रेप में पति जेल चला जायेगा, तो स्त्री क्या करेगी? उन दोनों के बाल बच्चें है तो क्या वो बलात्कारी के बच्चे कहलाएंगे? उनकी शिक्षा दीक्षा कैसे होगी? पालन पोषण कैसे होगा? दहेज के मामलों में पति के साथ साथ माँ-बाप और दूर के रिश्तेदारों पर भी मुकदमा कर दिया जाता है तो इस मामले में क्या विवाहिता सिर्फ पति पर ही केस करेगी।

कमल कुमार सिंह

सामान्य बलात्कार और मैरिटल रेप में अंतर बलात्कार को जघन्य इसलिए माना गया है क्योंकि इसमें स्त्री की व्यक्तिगत डिग्निटी ही नही बल्कि सामाजिक अस्तिव भी समाप्त हो जाता है (फर्जी प्रेरिक्स ऑफ मैरिज फर्जी पीड़ितों की बात नही कर रहा) उसके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है, उस स्त्री के परिवार के अस्तिव पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है, सामाजिक सुरक्षा खत्म हो जाती है। अब उससे शादी कौन करेगा? कौन अपनाएगा? एक यक्ष प्रश्न हो जाता है।  क्या यही सब मैरिटल रेप में होता है?  

किसी भी रात पत्नी महसूस करती है कि उसके साथ ज्यादती हो रही है तो निश्चित ही उसके साथ अन्याय है लेकिन क्या पति द्वारा बलात्कार में उसकी सामाजिक सुरक्षा खतरे में आती है? उसके या उसके परिवार के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगता है? जबकि अगले सुबह वह तमाम मौजूद कानूनों का उपयोग कर तलाक ले सकती है,की समाज की मर्यादा और सुरक्षा में कोई फर्क नही आता, बल्कि उल्टे पति से लाखों रुपये उगाह सकती है जिसका अधिकार उसे कानून देता है।

यह कानून विवाह जैसी संस्था को तोड़ने का हथियार बन जायेगा। जो कुछ हद तक 498 A पहले ही कर रहा है। यही नही महिलाओ को गैर पुरुषो के लिए आसान शिकार बनाना भी ये एकतरफ़ा कानून कर रहें हैं, जो कड़वा लेकिन सत्य है। ये पित्र सत्तात्मक समाज तोड़ने की प्रक्रिया नही बल्कि महिलाओं को दूसरों के लिए आसान शिकार बनाने की प्रक्रिया मात्र है। (लेखक सामाजिक कार्यकर्त्ता और कानून के छात्र हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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