कोरोना महामारी के चलते लगे देशव्यापी लॉकडाउन ने हमें बहुत सी पुरानी और अच्छी आदतों को वापिस अपनाने की तरफ दोबारा प्रेरित किया है जिनमें से एक है व्यायाम और खासकर व्यायाम के लिए साईकल चलाना। अगर आपने भी ठान लिया है कि आप भी व्यायाम और शारीरिक तन्दुरुस्ती के लिए एक नई साईकल लेने वाले हैँ तो स्वयं को बधाई देते हुए इस लेख को पढें। साईकल से जुड़ी आपकी अधिकतर शंकाओं का समाधान करने का पूरा प्रयास करूँगा।
साईकल के रोज़ाना प्रयोग का सिलसिला मेरे लिए कॉलेज के समय शुरू हुआ था जब मैँ अभियांत्रिकी की शिक्षा ग्रहण कर रहा था। फिर साईकल लेने का विचार मेरे मन में वापिस लौटा जब विवाह के 7 साल बाद मुझे एहसास हुआ कि मैँ थोड़ा मोटा हो चला था। अब तो नई साईकल लेनी ही थी पर कम बजट में, क्योंकि मन में संशय था कि ना जाने कितनी चला पाऊँगा। सुना था कि गियर वाली साईकल चलाने का मज़ा ही कुछ और होता है तो ठान लिया था कि इसके बिना तो मानेंगे नहीँ। बस तो लगभग 15 वर्ष बाद मेरी सस्ती, नई, पर गियर वाली साईकल आई और धीरे धीरे मेरी शाम को घूमने की साथी बन गई। मैँ स्वयं को लम्बी दूरी वाला प्रो साइकिलिस्ट तो नहीँ मानता पर लगभग रोज़ 13-14 किलोमीटर साईकल का सफर अवश्य करता हूँ।
फिर समय बीतने के साथ धीरे धीरे सड़क पर चलते काफी बेहतर साइकिलें दिखने लगीं तो इच्छा हुई एक नई साईकल लेने की। एक उच्च स्तर की बेहतरीन साईकल ली भी, पर वो 3 महीने में ही चोरी हो गई। थोड़े समय में फिर पैसे इकट्ठा किए और इस बार मुझे बैटरी वाली साईकल लुभावनी लग रही थी। किश्तें बनवा कर ये शौक भी पूरा किया। लगभग डेढ़ वर्ष आनंद लेकर अभी चंद दिन पहले बैटरी वाली साईकल को भी अलविदा कह दिया। अब फिर एक नई साईकल की खोज शुरू हुई। पर इस बार मैं तैयार था, अच्छे से जानता था कि नई साईकल में मेरी ज़रूरतें क्या क्या हैँ। आखिर अब तक हर बार दुकानदारों की ही मानता आ रहा था और लगभग 7-8 साल से रोज़ साईकल चला के अनुभव भी प्राप्त कर चुका था।
सबसे पहले ऑनलाइन एक साईकल की तलाश शुरू की। कुछ पुरानी सायकलों पर भी नज़र पड़ी। देखा तो लोग सिर्फ शौक में ली गई लगभग नई ही साईकल आधी कीमत पर बेचने पर आमादा थे। उन्हें खरीदने के बाद अपनी साईकल पसँद नहीँ आ रही थी। मुझे ऐसा लगने लगा कि आमतौर पर लोग नए नए शौक के चलते जल्दबाजी में गलत साईकल खरीद लेते हैँ और फिर थोड़े ही समय में उसे चलाना छोड़ देते हैँ। बस इसी सोच ने मुझे प्रेरणा दी कि मैं ये लेख लिखूँ। किसी प्रोफेशनल साइकिलिस्ट के लिए ये जानकारी शायद बहुत साधारण प्रतीत हो पर एक आम आदमी जो व्यायाम या फिटनेस के लिए ही अपनी गाढ़ी कमाई से पहली बार एक साईकल खरीदना चाहता है, उसके लिए ये जानकारी निस्संदेह ही काफी उपयोगी सिद्ध होगी।
सबसे पहले ये सोच लें कि क्या आप लगभग रोज़ आधा घण्टा व्यायाम के लिए साईकल चला पाएँगे? अगर नहीँ तो साईकल लेने का विचार अभी त्याग दें। यकीन मानिए 15-20 दिन बाद ही आपकी साईकल मात्र कपड़े सुखाने का स्टैंड बन कर रह जाएगी या फिर कभी कभार किसी सप्ताहांत पर आप अपने कुछ दोस्तों के साथ अपनी साईकल को अनुग्रहित किया करेंगे। यदि हाँ, तो सबसे पहले ये तय कर लें कि नई साईकल के लिए आप कितने पैसे ख़र्चने वाले हैँ। इस रकम के अलावा भी कुछ पैसे अलग रखिए साईकल के उप-साधन यानि एक्सेसरीज के लिए। अपने बजट पर जितने पक्के रहेंगे, संभावना है उतना बेहतर निर्णय लेंगे। सबसे ज़रूरी बात, खरीदने की जल्दी ना करें। यदि दुकान पर जल्दी दिखाई तो आपको पक्का ही कोई साईकल बेच दी जाएगी जिसका शायद बाद में आपको पछतावा भी हो। याद रहे आपकी सूची में जब तक अधिकतर बातों पर टिक्का ना लगे, तब तक जेब से पैसे नहीँ निकालने हैँ। अगर आप तैयार हो गए हैँ तो फिर चलिए साईकल लेने चलते हैँ।
रिम साइज: नई साईकल लेने में रिम का साइज सबसे ज़रूरी फैसला होता है। इस मामले में बहुत सावधानी से। बहुत सी बार दुकानदार नए ग्राहक को झाँसा दे देते हैँ। यदि उनके पास उपयुक्त रिम साइज से छोटी साईकल उपलब्ध हो तो कह देते हैँ,”सर इसका फ्रेम ऊँचा है, एक ही बात है”। यदि उपयुक्त रिम साइज से बड़ी साईकल उपलब्ध हो तो कहेंगे,”सर एक साइज बड़े रिम लेना ही बेहतर होता है, इसका फ्रेम नीँचा है इसलिए ये आपके लिए एकदम उपयुक्त है।” याद रखिये फ्रेम का आकार रिम के आकार के हिसाब से ही बनाया जा सकता है। डिज़ाइन के हिसाब से फ्रेम की ऊँचाई में ही थोड़ा फर्क आएगा बस। तो फ्रेम की बात को बाद के लिए छोड़कर रिम के साइज तो कस के पकड़ लीजिए। अगर आपका कद 5’10” से अधिक है तो 29 इंच वाले रिम , 5’5″ से 5’9″ है तो 27.5 इंच वाले रिम और अगर 5 फ़ीट से लेकर 5’4″ के हैँ तो 26 इंच के रिम वाली ही साईकल देखें।
गलत साइज के रिम लेने से क्या होगा: छोटे रिम वाली साईकल में पैडल की ज़मीन से ऊँचाई कम होती है और बड़े रिम वाली साईकल में अधिक। अगर आप अपने कद के हिसाब से बड़ी साईकल चलाएँ तो गद्दी नीचे करके चलानी होगी। ऐसा करने पर साईकल चलाते हुए घुटने पूरे नहीँ खुल पाएँगे जिससे आपकी लगाई ताकत साईकल को चलाने में पूरी इस्तेमाल नहीँ होगी और आप ज़रूरत से अधिक थकावट महसूस करेंगे। और यदि गद्दी ऊँची की तो पैर नीचे नहीँ लग पाएँगे जो आपकी सुरक्षा के साथ समझौता करने जैसा होगा। कद के हिसाब से छोटी साईकल ली तो गद्दी ऊँची कर के चलानी पड़ेगी। ऐसे में हैंडल नीचा रह जाएगा जो थोड़े समय में ही कमर दर्द का कारण बन सकता है। इसी साईकल में यदि गद्दी हैंडल के बराबर रखी तो फिर घुटने पूरे नहीँ खुलेंगे। साईकल ज़रूरत से ज़्यादा छोटी रही तो हैंडल और गद्दी के बीच में जगह बहुत कम रहेगी और आप शायद कुब जैसा निकाल कर ही साईकल चलाएंगे। दोनोँ ही स्थितियों में साईकल चलाने से आपके शरीर का व्यायाम हो ना हो, उसे नुकसान ज़रूर पहुँचेगा। याद रखिए जोश में आकर किसी बहकावे में नहीँ आना है और अपने अनुकूल ही साईकल लेनी है। यदि अभी उपलब्ध ना हो तो दुकानदार से किसी और दिन का समय लेकर वापिस लौट आएँ या किसी दूसरी दुकान की ओर बढ़ चलें।
टायर: यदि मध्यम बजट तक ही रहने वाले हैँ तो एकदम पतले या बहुत मोटे टायर वाली साईकल की तरफ देखें भी नहीँ। इस तरीके की साईकल आपको शुरू में आकर्षित ज़रूर करेगी। बहुत पतले टायर वाली साईकल समतल रास्तों पर या रेस ट्रैक पर लंबी दूरी तक चलने के लिए बनी होती है। शहर की सड़कों पर इसके रिम छोटे मोटे गड्ढे में भी जल्दी मुड़ जाते हैं और थोड़ा घिसने के बाद टायर बार बार पँचर भी होने लगते हैँ। अधिक मोटे टायर वाली साईकल दिखावे के लिए बहुत अच्छी लगती है पर उसपर लम्बी राइड करना बहुत कठिन होता है क्योंकि उसमें घर्षण अधिक रहता है। इतने मोटे टायर सिर्फ बर्फ या रेत मे साइकिल चलाने के लिए चाहिए होते हैं जहाँ कुदरती तौर पर घर्षण इतना कम होता है की साइकिल क स्थिर रखना बहुत मुश्किल हो जाता है।
एक छोटी सी बात जिसे अधिकतर लोग अनदेखा कर देते हैँ और वो है टायर में हवा भरने वाली जगह। ध्यान से देख लें और साईकल वही खरीदें जिसमें ये जगह मोटरसाइकिल के टायर जैसी हो। ये चौड़े मुँह वाली होती है और इसमें मज़बूत वॉल्व होती है। पतले मुँह वाली ट्यूब में वॉल्व कमज़ोर रहती है जिससे बार बार हवा का दबाव कम हो जाता है। अगर ये चुनाव सही कर लिया तो शायद महीने में 1 बार ही टायर में हवा भरने की आवश्यकता पड़ेगी।
किस धातु का रिम लेना चाहिए: लोहे/स्टील के रिम सस्ते आते हैँ पर इनसे साईकल चलाने में अधिक ताकत लगानी पड़ती है। यदि बजट में है तो रिम अलॉय के ही लें। 2 परतों वाले यानि डबल वॉलड रिम अधिक मजबूत होते हैँ। तो अब दुकान पर जा कर सबसे पहले अपने हिसाब के रिम साइज और टायर वाली साइकिलें निकलवा लें।
फ्रेम: अब बारी आती है साईकल का फ्रेम चुनने की। लोहे का फ्रेम सबसे सस्ता होता है पर इसमें साईकल चलाने के लिए बहुत ताकत लगानी पड़ती है। इससे बेहतर आता है हाई स्ट्रेंथ लाइट वेट स्टील का फ्रेम – ये आपकी राइड को लोहे के फ्रेम के मुकाबले बहुत बेहतर बना देता है और अधिकतर मध्यम बजट की सायकलों में यही प्रयोग होता है। इससे बेहतर होता है पूर्ण अलॉय का फ्रेम और सबसे बेहतर और हल्का होता है कार्बन फ्रेम। अपने बजट के हिसाब से चुनाव करें।
सही फ्रेम के चुनाव के लिए अपने बजट में आने वाली सभी साइकिलों पर बैठ के देखें। याद रखें, बैठकर देखने से पहले गद्दी की ऊँचाई को अपने हिसाब से समायोजित अवश्य कर लें। इसके लिए ये तरीका अपनाएँ। गद्दी की ऊँचाई लगभग अपनी कमर की ऊँचाई पर फिक्स कर लें। अब सीट पर बैठ जाएँ। साईकल को इतना झुका लें कि जिससे आपके बाएँ पैर का सिर्फ पँजा ज़मीन पर टिका रहे। अब दायाँ पैडल घुमा कर बिल्कुल नीचे कर लें। जब आपका दायाँ पैर फर्श के समानांतर हो तब आपकी दायीं टाँग बस हल्की सी मुड़ी होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीँ है तो ज़रूरत के हिसाब से गद्दी को थोड़ा ऊपर या नीचे कर लें। ये आपके बैठने के लिए आरामदायक गद्दी की ऊँचाई होगी जब आप साईकल चला रहे होंगे। अब जब आप एक-दो बार साईकल पे चढ़कर और उतरकर देखेंगे तब आप 1-2 साईकलों पर आकर ठहर जाएँगे। फ्रेम वो चुनें जिसपर आप आराम से चढ़ और उतर पाएँ।
हैंडल बार: पहली बात है हैंडल बार की चौड़ाई। साईकल पर बैठ कर हैंडल बार की दोनों ग्रिप को अपने दोनों हाथों से ऐसे पकड़ लीजिए जैसे अभी आप साईकल चलाने ही वाले हैँ। इस स्थिति में आपके हाथ आपके कंधों से अधिक चौड़े रहने चाहिए, या कम से कम बराबर तो रहने ही चाहिए। अगर ऐसा नहीँ है तो साईकल को तुरंत नकार दीजिए, ये आपके लिए नहीँ बनी है। अब आती है हैंडल की ऊँचाई। याद रखिए फिल्मों या रेस में देखी गई प्रोफेशनल साईकल को देखकर चुनाव नहीँ करना है। आप साईकल सड़क पर यातायात के बीच चलाने वाले हैँ। तो बस जिस ऊँचाई पे आपने अपने लिए गद्दी फिक्स की थी हैंडल कम से कम उस ऊँचाई का तो होना ही चाहिए। थोड़ा अधिक ऊँचा हो तो बेहतर, इससे साईकल चलाते हुए आपकी कमर सीधी रहेगी और लम्बी दूरी तक चलाना आसान रहेगा। यदि हैंडल की ऊँचाई गद्दी की ऊँचाई से कम है तो इस साईकल को ना लेना ही बेहतर रहेगा। कोशिश करें कि साईकल ऐसी लें जिसके हैंडल की ऊँचाई बढ़ाई जा सके। जैसे जैसे आपको साईकल चलाने की आदत पड़ेगी, आपको हैंडल ऊँचा करवाने की चाह होने लगेगी।
गियर: यदि आप अधिकतर समतल रास्ते पर ही चलने वाले हैँ तो आपको गियर बदलने की आवश्यकता ही नहीँ पड़ेगी। साईकल के पिछले टायर पर लगे गियर तो आप शायद ही कभी बदलें। पिछले गियर से अधिक ज़रूरत होती है अगले गियर यानी फ्रिक्शन कंट्रोल की। चढ़ाई चढ़ने के लिए ये बेहद उपयोगी रहता है। फ्रिक्शन कम करके और गियर बड़ा लगा के चढ़ाई चढ़ना बेहद आसान हो जाता है। इसीलिए यदि आप गियर वाली साईकल लेने वाले हैं तो सिर्फ पिछले गियर लेना बेहद गलत सिद्ध होगा।
सस्ती साईकल में मिलेंगे हैंडल बार की ग्रिप पर लगे गोल घुमाकर बदले जाने वाले गियर कंट्रोल, इनपे तुरन्त काटा लगा दें क्योंकि इससे चलती साईकल में गियर बदलने में अधिक वक़्त लगता है और फिर ये जल्दी खराब भी होते हैँ। गियर बढ़ाने और घटाने का अलग लीवर हो, ऐसी ही साईकल लें। और याद रखिए, गियर कैसे भी हों देर सवेर उनको मिस्त्री की आवश्यकता पड़ेगी ही और बाद में खर्चा भी अच्छा खासा होता है। इसीलिए मेरी सलाह यही है कि यदि ज़रूरी ना हो तो बिना गियर वाली ही साईकल लें। ऐसा करने से आप अपना पैसा बेहतर ब्रांड, बेहतर फ्रेम, बेहतर रिम, या डिस्क ब्रेक में लगा सकते हैं। सच्चाई ये है कि कम क्वालिटी की गियर वाली साईकल से अच्छी क्वालिटी की बिना गियर वाली साईकल हमेशा तेज़ और बेहतर चाल से चलती है।
ब्रेक: साईकल में 3 तरीके के ब्रेक सिस्टम आते हैँ। पहला रिम ब्रेक, दूसरा डिस्क ब्रेक और तीसरा बहुत ही कम पाया जाने वाला ड्रम ब्रेक। रिम ब्रेक भी 3 तरीके की होती हैँ और डिस्क 2 तरीके की। पर क्योंकि हम साधारण साइकिलिस्ट हैँ तो हम अधिक तकनीक में नहीँ पड़ेंगे। आम भाषा में बढ़ती कीमत और क्षमता के हिसाब से पहले साधारण ब्रेक होते हैँ, फिर पावर ब्रेक और फिर डिस्क ब्रेक। बजट के हिसाब से चुनाव कर लें। यदि रेस नहीँ लगाने वाले हैँ तो पॉवर ब्रेक भी बढ़िया ही काम करेंगे।
बैटरी: बैटरी वाली साईकल बहुत लोगोँ को आकर्षित करती है, और करे भी क्योँ ना? इतने फीचर्स के साथ जो आती है। यदि आप साईकल सिर्फ व्यायाम के लिए ले रहे हैँ तो बैटरी वाली साईकल की तरफ देखिए भी नहीँ। सिर्फ 2 ही सूरतों में बैटरी वाली साईकल लेने की सोचें पहली, यदि आप रोज ऑफिस या काम पर अपनी साईकल ले जाने की सोच रहे हैँ। लौटते समय कभी थके हों तो ये बेहतरीन विकल्प सिद्ध होती है। दूसरी, यदि आपके घुटनों में दर्द रहता है या आप 50 साल से अधिक के हैँ। घुटने में दर्द रहता है तो बैटरी बहुत सहायक सिद्ध होती है, ये साईकल चलाते समय आपके घुटनों को सिर्फ चलाती है, उनपर ज़ोर लगाने की नौबत नहीँ आने देती। पिछले कुछ समय से तकनीक प्रगति करती जा रही है। देखा गया है कि कुछ मिस्त्री बड़ी कम कीमत पर किसी भी साईकल में बैटरी और मोटर लगा के इसे बैटरी वाली साईकल जैसा ही बना देते हैं। ये कितना कारगर सिद्ध होता है अभी कहा नहीँ जा सकता। पर इससे आशा ज़रूर जगती है कि निकट भविष्य में हम कम पैसों में ही बैटरी वाली साईकल का आनंद ले पाएँगे।
शॉकर: साईकल में आने वाले पिछले शॉकर जो गद्दी के नीचे लगे रहते हैँ, वो वयस्कों के लिए कमरदर्द का कारण बन सकते हैँ, खासकर यदि आपका वज़न सामान्य से अधिक है तो। वयस्कों के लिए बिना पिछले शॉकर वाली साईकल ही बेहतर विकल्प रहती है। यदि आप जहाँ साईकल चलाने वाले हैँ, वहाँ सड़क थोड़ी ऊबड़ खाबड़ है तो अगले शॉकर सहायक सिद्ध होते हैँ। अगर बजट में हो तो अगले शॉकर वाली साईकल लेनी चाहिए।
बीमा: साईकल चोरी होने की स्थिति में आप हक्के बक्के रह जाएँ इससे बेहतर पहले ही ₹400-500 लगाकर बीमा करवा लें – इसे बेहद ज़रूरी मानिए और बिल्कुल कंजूसी ना करिए।
ब्रांड: अब जब आप समझ ही गए हैँ की आपको अपनी साईकल में क्या चाहिए और क्या नहीँ तो अब बारी आती है ब्रांड के चुनाव की। आपकी सभी ज़रूरतें पूरी करती हुई सबसे सस्ती साईकल से देखना शुरू करें और धीरे धीरे अपने बजट में आने वाली सबसे अच्छे ब्रांड की साईकल तक जाएँ। ऐसा करने से आपको पता चल जाएगा कि अच्छे ब्रांड आपसे पैसा किस चीज़ का ले रहे हैँ और ये अधिक मूल्य कितना उचित है। सही चुनें। दो से तीन दुकानें घूमकर या इंटरनेट से जानकारी निकालकर आपको पता चल जाएगा बड़े और अच्छे ब्रांड के बारे में। यहाँ मैँ किसी ब्रांड का नाम नहीँ लूँगा क्योंकि ये लेख मैंने किसी ब्रांड के प्रचार के लिए नहीँ लिखा है।
टेस्ट राइड: अंतिम निर्णय लेने से पहले यदि एक ही दुकान पे बार बार भी जाना पड़े तो बिल्कुल ना हिचकें। जब आप बिल्कुल खरीदने की स्थिति में आ जाएं तब 2-3 दुकानदारों से अपनी चुनी हुई कम से कम 2-2 साईकल चलवाने के लिए कहें। बहुत से दुकानदार साईकल चलवाने में थोड़ा हिचकते हैँ, पर यदि ग्राहक खरीदने के अँतिम चरण में हो और थोड़ा हठ करे तो वो साईकल चलवा के दिखा देते हैँ। चलाने से पहले गद्दी अपने हिसाब से समायोजित जरूर कर लें। कम से कम 200-300 मीटर ज़रूर चलाएँ जिससे आपको साईकल की चाल समझने में मदद मिलेगी। ऐसा करने से आप 4-6 साइकिलें चला के देख लेंगे और आपको तुलना कर के खरीदना आसान होगा। टेस्ट राइड के बाद अपनी पसंदीदा साईकल को तुरंत खरीदने का कार्यक्रम पूरा कर लें, पता चले कल सोच के लौटे तब तक वो बिक गई। एक साईकल पे मन पक्का कर लेने के बाद दुकानदार को कहें कि ये साईकल पसँद आ रही है। अब इसका मूल्य वगैरह तय करते करते ही दुकानदार को घेर लीजिए उप-साधन यानि एक्सेसरीज के लिए। साईकल के पैसे देने से पहले ही जो जो उप-साधन चाहिए उन्हें भी लगवा ही लें। यकीन मानिए अगर आप बाद में लौटे तो आज वाला रेट नहीँ मिलने वाला। अभी तो नई साईकल बेचने का लालच दुकानदार को आपके साथ बांधकर रखेगा। तो अब फटाफट चलिए उस उपसाधनों से भरी डिस्प्ले की तरफ और लपक लीजिए। इनपर बहुत सोच समझकर पैसा खर्च करिए। जो सामान आपके लिए ज़रूरी हो वही लें।
घण्टी / हॉर्न: ये अक्सर नई साईकल के साथ मुफ्त मिलती है पर सबसे सस्ती और सुस्त बजने वाली। दुकानदार के पास उपलब्ध घण्टियाँ बजा के देख लें और चाहे थोड़ा हठ करना पड़े पर सबसे तेज़ आवाज़ वाली, बड़ी घण्टी ही लगवाएँ। सड़क पर यातायात के बीच हल्की आवाज़ अक्सर दब जाती है। दुकानदार आपको लाइट के साथ बैटरी वाला हॉर्न भी बेचने की कोशिश कर सकते हैँ, पर यकीन मानिए कोई भी हॉर्न एक अच्छी घण्टी जितनी आवाज़ नहीँ करेगा। और फिर घण्टी खराब भी नहीँ होती ना।
बोटल होल्डर: ये भी थोड़ा ज़ोर देने पर मुफ्त में मिल जाता है नई साईकल के साथ। ज़रूर लगवाएँ बहुत काम आता है। ये सस्ता वाला भी चलेगा।
ताला: बहुत सी बार दुकानदार ताला भी नई साईकल के साथ दे देते हैँ पर ये बहुत औसत क्वालिटी का होता है। यहाँ आपको थोड़ा चालाक बनने की आवश्यकता होगी। बस इतना पूछ लें कि ये कितने वाला है। फिर दुकान में उपलब्ध अच्छे तालों का मूल्य भी पूछ लें। बेहतर रहेगा कि आप लगे हाथ ही मुफ़्त वाले ताले के पैसे कम करवा के बदले में एक बढ़िया ताला ले लें और गद्दी के नीचे गोल घुमा कर टाँग लें। इस जगह पर ये फ्रेम से टकरा कर आवाज़ नहीँ करेगा।
हेलमेट: सुरक्षा सर्वोपरि, अच्छा वाला ही लेना बेहतर रहेगा। टूल किट: अधिकतर बड़े ब्रांड की साइकिलें आजकल अपनी टूल किट के साथ आती हैँ। यदि आपकी साईकल के साथ ये ना भी आए तो खरीद लेने में ही समझदारी रहती है। आजकल टूलकिट एक ही चाबी के रूप में आती है जिसमें अलग अलग नम्बर की नट कसने वाली चाबी के बराबर के छेद होते हैं। बहुत सस्ती मिलती है और कभी भी रास्ते में फँसने पर बहुत काम आ सकती है।
बोतल: ये अक्सर ही साईकल की दुकान से हल्की क्वालिटी की मिलती है। मेरी सलाह से इसे किसी अच्छी स्पोर्ट्स गुड्स की दुकान से लें।
लाइट: यदि अक्सर शाम के बाद ही साईकल चलाएँगे तो आगे और पीछे दोनों तरफ लाइट अवश्य लगवाएँ। लाइट को हैंडल पर पकड़ने वाले रबड़ के क्लिप बहुत जल्दी टूट जाते हैँ और फिर लाइट बेकार हो जाती है, इसलिए, प्लास्टिक की फिक्स्ड क्लिप वाली लाइट लेने की कोशिश करें। बदले जाने वाले सेल से चलने वाली लाइट थोड़ी सस्ती आती है और चार्ज होने वाली बैटरी से चलने वाली थोड़ी महँगी। जो भी चुनें, रोशनी तेज़ होनी चाहिए।
चौड़ी गद्दी: बहुत से दुकानदार आपको सलाह देते हैँ नई साईकल में ही गद्दी बदलवा लेने की और चौड़ी और मुलायम गद्दी लगवाने की। इस बहकावे में नहीँ आएँ। अधिक चौड़ी गद्दी देखने में सुंदर और आरामदायक लगती ज़रूर है पर होती नहीँ। यदि ऐसा होता तो साईकल बनाने वाली कंपनी पहले ही से इसे लगा के देती। अधिक चौड़ी गद्दी लगवाई तो जांघों के बीच हो जाएँगे चकत्ते और बहुत दिन तक समझ भी नहीँ आएगा कि ऐसा हो क्योँ रहा है। फिर दर्द और तकलीफ के चलते साईकल चलाना बन्द हो जाएगा। जेल पैड वाला सीट कवर: यदि आपको साईकल के साथ आई गद्दी थोड़ी सख्त लगे तो इसे ज़रूर लगवा लें। ये बहुत आराम देगा।
कैरियर: आजकल अधिकतर साइकिलें कैरियर के बिना आती हैँ क्योंकि ग्राहकों को ये साईकल की सुंदरता के नज़रिए से अधिक पसंद नहीँ आता। यदि आपके लिए ज़रूरी हो तो लगवा सकते हैँ – घर का छोटा मोटा सामान लाने में सहायक रहता है।
मड गार्ड: अगर आप गीली सड़क या कीचड़ वाले रास्तों पर चलने वाले हैँ तभी लगवाएँ। मड गार्ड से आधुनिक साईकल की चाल बदल जाती है और ये भारी चलने लगती हैँ। अगर ज़रूरी ना हो तो इन्हें ना लगवाएँ।
मोबाइल होल्डर: पहली किस्म के होल्डर आपकी साईकल के हैंडल पर फिक्स हो जाते हैँ। पर साईकल चलाते समय खासकर थोड़े ऊबड़खाबड़ रास्तों पर और मोबाइल चोरी होने के डर से ये आपको सुरक्षित महसूस नहीँ करवाते। इनका बेहतर विकल्प हैं वाटरप्रूफ डिस्प्ले बैग। इनमें आपको अपने फ़ोन की स्क्रीन दिखती रहती है और आप उसे चला भी सकते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें थोड़ा ज़रूरी सामान रखने की भी जगह रहती है। ये भी 2 तरीके के आते हैँ। पहले हैंडल पर लगने वाले और दूसरे साईकल के डंडे पर लगने वाले। सुरक्षा के तहत, डंडे पर लगने वाला बैग चुनिए। लगवा कर तुरन्त टूल किट इसमें डाल दीजिए। किसी दिन पक्का काम आएगी। ताले की चाबी भी इसी में रख लें। कुछ पैसे और एक कपड़ा आदि रखने के लिए भी उपयुक्त जगह रहती है। हवा भरने का पम्प: यदि आपके पास ये पहले से नहीँ है तो इसे ज़रूर लीजिए, सबसे सस्ते वाले से भी काम चल जाएगा। शायद 15-20 दिन में 1 बार ही ज़रूरत पड़े इसकी।
हैंडल हाइट एक्सटेंडर: यदि हैंडल बार खींच कर ऊपर होने वाला ना हो और हैंडल बार आपकी सीट के बराबर ऊँचाई पर हो तो इसे नई साईकल में लगवाने में ही भलाई है। इससे हैंडल लगभग 4 इंच ऊँचा किया जा सकता है। सब सामान का रेट पहले ही तय कर लें और साईकल के रेट में जुड़वा कर ही बिल बनवाएँ और बीमा करवाएँ। सभी उप-साधन अपने सामने खड़े हो के लगवा लें और साईकल एक बार फिर चला कर तसल्ली कर लें। सब ठीक हो तो अब आप दुकानदार को भुगतान कर दें।
अब मेरी ओर से नई साईकल खरीदने पर बधाई स्वीकार करें। आशा करता हूँ आपके अधिकतर सवालोँ का जवाब मिल गया होगा और आपकी नई साईकल आपको रोज़ सवारी करने के लिए प्रेरित रखेगी।
(लेखक सचिन टॉप लीफ- टेलेंट सर्च स्पेशलिस्ट कम्पनी के को-फाउंडर और बिजनेस हैड हैं।)