लखनऊ। अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोपों को लेकर दर्ज एक एफआईआर को खारिज कर दिया है। मामले में पुलिस ने जांच के दौरान बलात्कार और पॉक्सो एक्ट आदि की धाराएं भी लगाई थीं। यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राजीव सिंह की बेंच ने विजय प्रकाश सिंह व अभिषेक कुमार सिंह की याचिका पर पारित किया।
याचियों के अधिवक्ता चन्दन श्रीवास्तव ने बताया कि उक्त एफआईआर अयोध्या जनपद के महिला थाना में कथित पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई थी। एफआईआर में अभिषेक कुमार सिंह पर वादिनी को शादी का झांसा देकर शारीरिक व मानसिक शोषण करने का आरोप लगाया गया जबकि उसके पिता विजय प्रकाश सिंह पर शादी से इंकार करने का आरोप लगाया गया था। उक्त आरोपों के तहत पुलिस ने आईपीसी की धारा 493 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली।
याचियों की ओर से दलील दी गई कि उक्त धारा असंज्ञेय है, इसके साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 के तहत उक्त धारा में मजिस्ट्रेट सिर्फ पीड़िता के परिवाद पत्र पर ही संज्ञान ले सकता है। इस पर पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने एसएसपी, अयोध्या से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर जवाब तलब किया था।आदेश के अनुपालन में एसएसपी ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि मामले में जांच के दौरान बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध का होना भी पाया गया है लिहाजा आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 की वृद्धि कर दी गई है।
इस पर याचियों के अधिवक्ता का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 156 व 157 के तहत पुलिस जब इस मामले में विवेचना ही नहीं कर सकती थी तो जांच के दौरान धाराएं बढाने का भी कोई औचित्य नहीं है। यह भी दलील दी गई कि कोर्ट के 8 जुलाई 2020 के आदेश के बाद 10 जुलाई 2020 को वादिनी का दोबारा बयान दर्ज किया गया व उसी दिन मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज करवा के उक्त धाराओं की वृद्धि मात्र कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए की गई है। कोर्ट ने मामले के तकनीकी पहलुओं को देखते हुए व यह पाते हुए कि धाराओं की वृद्धि पुलिस ने नाराजगीवश की है, उक्त एफआईआर को खारिज कर दिया।