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18 May 2025, Sun

चंद्रशेखर आजाद ने सावरकर को गद्दार और अंग्रेजों का साथी नहीं कहा था

सोशल मीडिया में लोगों का दावा है कि चंद्रशेखर आजाद ने विनायक दामोदर सावरकर को ‘हरामखोर’ और ‘अंग्रेजों से मिला हुआ’ बताया था। साथ ही दावा है कि सावरकर ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई बंद करने को कहा था। यह दावा यशपाल की किताब ‘सिंहावलोकन’ के हवाले से किया जाता है। पड़ताल में हमने यशपाल की किताब को खंगाला तो यह दावा झूठा निकला।

कांग्रेस नेता सौरभ राय ने ट्वीट कर लिखा है, ‘हिंदुस्तानी सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सुप्रीम कमांडर #चंद्रशेखर_आजाद को एक बार #सावरकर ने संदेश भिजवाया कि, “क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ना बंद कर मुसलमानों की हत्या करनी चाहिए.” आजाद ने उसके भेजे ₹50,000 यह कहकर ठुकरा दिए थे कि ‘यह(सावरकर) हम लोगों को भाड़े का हत्यारा समझता है, ये अंग्रेजों से मिला हुआ है! हमारी लड़ाई अंग्रेजों से है… मुसलमानों को हम क्यों मारेंगे? मना कर दो… नहीं चाहिए इसका पैसा.” ~यशपाल ने अपनी किताब ‘सिंहावलोकन’ में लिखा है।’

डॉ. चयनिका उनियाल ने ट्वीट कर लिखा है, ‘भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद, #ChandraSekharAzad अपने साथियों के बचाव के लिए पैसे जुटा रहे थे। इस सन्दर्भ में यशपाल ने ‘सिंघवालोकन’ में लिखा है कि #सावरकर 50,000रु देने को इस शर्त पर तैयार थे कि क्रांतिकारी अंग्रेजों से लड़ना बंद कर जिन्ना और अन्य मुसलमानों की हत्या करें। #ChandrashekharAzad ने सावरकर के प्रस्ताव पर सख्त आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा, “यह हम लोगों को स्वतन्त्रा सैनानी नही भाड़े का हत्यारा समझता है। अंग्रेज़ों से मिला हुआ है। हमारी लड़ाई अंग्रेजो से है…मुसलमानो को हम क्यूं मारेंगे? मना कर दो..नही चाहिये इसका पैसा। ऐसे होते हैं असली वीर’

मरियम खान ने ट्वीट कर लिखा है, ‘चन्द्रशेखर आज़ाद ने “सावरकर” को “हरामखोर” कहा था ये कटु सत्य है कोई संघी इसे झूठ साबित कर दे तो मैं संघ की सदस्यता ले लूंगी  यशपाल जी की पुस्तक सिंघवलोकन में इस घटना का ज़िक्र है  जिसमें आज़ाद, “गे सावरकर” के लिए कहते है, कि इस हरामखोर सावरकर ने हमें भाड़े का हत्यारा समझ लिया है!’

अजय ने एक नोट ट्वीट कर लिखा, ‘सावरकर की सच्चाई तो आजाद भी जानते थे। इस नोट में लिखा है कि यशपाल ने अपनी आत्मकथा ‘सिंघवालोकन’ में लिखा है कि सावरकर 50,000 रुपये देने के लिए सहमत तो हो गए लेकिन इस शर्त पर कि आजाद और HSRA के क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ना बंद करना होगा और जिन्ना और अन्य मुसलमानों की हत्या करनी होगी। जब आज़ाद को सावरकर के प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो उन्हों इस पर सख्त आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा, “यह हम लोगों को स्वतन्त्रा सेनानी नही भाड़े का हत्यारा समझता है। अन्ग्रेज़ों से मिला हुआ है। हमारी लड़ाई अन्ग्रेज़ों से है…मुसलमानो को हम क्यूं मारेंगे? मना कर दो… नही चाहिये इसका पैसा।’

इस ट्वीट पर प्रखर मन्हेंद्र ने वामपंथी इतिहासकार अशोक कुमार पाण्डेय से पूछा कि कितनी सच्चाई है इस अंश में? जवाब में अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि यशपाल ने तो लिखा ही है। 

मोहम्मद वसीम ने लिखा है कि भगत सिंह के विरुद्ध गवाही संघियों ने दी। कांग्रेस ने वकीलों की फौज खड़ी करके उनको बचाने की कोशिश की थी। यशपाल ने अपनी पुस्तक ‘ सिंहावलोकन’ में लिखा है कि #कायर_सावरकर ने भगत सिंह को 50,000 ₹ की रिश्वत देने की कोशिश की और कहा अंग्रेजों की हत्या ना करे भगत सिंह ने 2 थप्पड़ लगाए।

क्या है हकीकत: अपनी पड़ताल में हमने देखा कि इन दावों यशपाल की किताब ‘सिंघवालोकन’ का उल्लेख किया गया है। इसिलियेह हमने भी इस किताब का अध्ययन किया। यहाँ पेज नम्बर 110 से इस प्रकरण का जिक्र है 

यशपाल ने अपनी किताब ‘सिंघवालोकन’ में लिखा है कि उन दिनों प्रसिद्ध क्रान्तिकारी बैरिस्टर सावरकर के बड़े भाई ‘बाबा’ दिल्‍ली आकर “वीर अजुंन” पत्र के कार्यालय में ठहरे थे। एक समय सावरकर बन्धु देश की स्वतंत्रता के लिये क्रान्ति के आन्दोलन के नेता ही नहीं बल्कि प्रवर्तक थे परन्तु उन दिनों उनका काये क्षेत्र हिन्दू महासभा  बन चुका था। वे हिन्दू महासभा के काम के प्रसंग में दी दिल्‍ली आये थे। लड़कपन में सावरकर बंधुओ के कार्य और साहित्य का मुझ पर कितना गहरा प्रभाव था, इस अनुमान के लिए एक ही बात काफी है कि पचीस वर्ष पूर्ण पढ़ी उनकी लिखी पुस्तक “अंडमान की गूँज” के अनेक भावपूर्ण वाक्य मुझे आज भी याद आते रहते हैं। हम लोगों को सावरकर बन्धुओं के प्रति इतनी श्रद्धा थी कि उनका दर्शन कर लेने का झवसर चूकना न चाहते थे। सावरकर हिन्दू महासभा का कार्य अपना चुके थे परन्तु हमें विश्वास था कि हमारे उद्देश्य में उन से सहायता अवश्य मिलेगी। मैं और भगवती भाई एक साथ उनसे मिलने गये। 

साधारणत: मुझे किसी भी महापुरुष के चरण छूने की इच्छा नही होती। गांधी जी से भेंट होने पर भी मुझे ऐसी इच्छा नहीं हुई परन्तु याद है कि दम दोनों ने दी बाबा के चरण छूकर अभिभादन किया और निशंक अपना वास्तविक परिचय दे अपने उद्देश में सहायता मांगी। बाबा ने हमें निराश भी नहीं किया। उन्होंने ने हम लोगों को कुछ दिन बाद, उन के दक्षिण में रहने पर, मिलने की बात कही। 

यशपाल आगे लिखते हैं कि बाबा के परामर्श के अनुसार मैं बम्बई गया। उनके बताए पते पर “घोबीतालाव’ में सावरकर बंधुओ में सबसे छोटे डाक्टर बाल, ढेन्टिस्ट को खोज बाबा का सन्देश दे उनका पता पृछा। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नेता बैरिस्टर सावरकर तब ”रत्नागिरी’ में नजरबंद थे। जांच-पड़ताल हुए बिना उनसे मिलने की आज्ञा न मिल सकती थी। सबसे बड़े भाई बाबा ‘अकोला में थे।  यशपाल लिखते हैं कि मैं रात गाड़ी में बिता लगभग सात बजे सुबह बाबा के यहां पहुँचा था। बाबा ने बहुत वस्सल भाव से सेरा स्वागत किया। अपने बिस्तर के समीप ही मेरे बैठने के लिए बिस्तर लगा दिया। पहुँचते ही गरम पानी से हाथ मुंह धुलवा गरम चाय पिलाई और बैठने पर कम्बल ओढा दिया।  

यशपाल के मुताबिक बाबा सावरकर ने समझाया, ‘विदेशी दासता से राष्ट्र को मुक्त करना हमारा उद्देश्य है। राष्ट्र की मुक्ति का उद्देश्य राष्ट्रीयता की उन्नति और रक्षा करना ही है। अंग्रेजी शासन के अतिरिक्त देश में दूसरा भी एक हमारा राष्ट्रीय शत्रु है जो हमारी राष्ट्रीय एकता का विरोधी है और अंग्रेज के पक्ष में होकर हमारे स्वतंत्रता के प्रयत्नों को विफल कर देता है। यह है मुसलमानों की अपने आपको देश के हिन्दू जन समुदाय और देश की परस्परागत्‌ संस्कृति से प्रथक समझने की भावना। प्रत्येक राष्ट्र की संस्कृति ही उसका प्राण और शक्ति होती है। सांस्कृतिक एकता ही राष्ट्रीय एकता का आधार होती है। विदेशी दासता के विरुद्ध हम अपनी सांस्कृतिक एकता और शक्ति के बल से हीं लड़ कर स्वतंत्र दो सकते हैं। हमें पहले सांस्कृतिक शक्ति और एकता स्थापित करने के लिये इसके विरोधी शत्रुओं से स्त्रतंत्र होना है । इसके बिना अंग्रेज से लड़ना ऐसे ही है जैसे दासता के वृक्ष की जड़ को छोड़ कर पत्तों को छांटते रहना। हमें तुम्हारे उद्देश्य से पूरी सहानभूति है परन्तु सहयोग तो तभी हो सकता हैं जब कार्य-क्रम में एकता हो।”  यशपाल के मुताबिक बाबा सावरकर ने आगे कहा, इस समय राष्टू के लिये सब से घातक वस्तु है जिन्‍ना के नेतृत्व में मुसलमानों की भारतीय राष्टीयता का विरोध कर, राष्ट में दूसरा राष्ट बनाने की नीति  जिन्ना इस नीति के प्रतीक और प्रतिनिधि हैं। यदि आप लोग इस व्यक्ति को समाप्त कर देने को जिम्मेवारी लें तो स्वतन्त्रता प्राप्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाथा दूर हो सकेगी | इसके लिए हम पचास हजार रुपये तक का प्रबन्ध करने की जिम्मेवारी ले सकते हैं।”    

यशपाल लिखते हैं कि मैंने विनीत सुस्कराइट से बाबा के प्रस्ताव के प्रति असमर्थता प्रकट कर दी। हमारी उस समय की कठिन आर्थिक परिस्थिति में पचास हजार रुपये की आशा मामूली बात न थी। जिन्ना पर आक्रमण को केवल शार्थिक समस्या इल करने का उपाय भी समझा जा सकता था। अपने राजनैतिक उद्देश्य के लिए राजनैतिक डकैती से अथवा जाली सिक्का बना लेने में भी हमें संकोच न था। डकैती में एफाध हत्या हो जाने की सम्भावना रहती ही थी। मि. जिन्ना की राजनीति से हमें सहानभूति नहीं विरोध ही था परन्तु साम्प्रदायिक मतभेद से हत्या करना हम लोग देशहित या सर्वसाधारण जनता के हित और एकता के विरुद्ध समझते थे। मुझे यह स्वयं अंधसाम्प्रदायिकता ही जंची।  मैं उसी दिन सन्ध्या दिल्‍ली लौटने के लिए तैयार हो गया।  

यशपाल लिखते हैं कि मेरे चलने से कुछ ही समय पूर्व एक व्यक्ति कपड़े में बंधा लम्बा सा बंडल बाबा के पास छोड़ गया। उस के चले जाने पर बाबा बोले- “तुम इतनी दूर से आए हो । जल्दी में एक ही चीज तुम्हें दे सकता हूँ। वह बंडल खोल उन्होंने हाथ भर लम्बा एक पिस्तौल निकाला। हथियार की गढ़न और रूप देखकर मैं समझ गया कि देहाती लोहार की बनाई चीज़ है। उसमें कारतूस के बजाय नाली के छेद में गज की सहायता से वारूद और गोली-गट्टा भरना पड़ता होगा। फिर भी बाबा की ओर देखकर पूछा–“इसके कारतूस ?”  “यही तो इसकी विशेषता है।”-मुस्कराते हुए बाबा ने समझाया- “’कारतूसों के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। इसे जब चाह भरा जा सकता है।” बाबा को धन्यवाद दे वह बोझ उठाने से इनकार कर दिया और अपनी कमर से ‘कोल्ट’ पिस्तौल निकाल कर दिखाया कि हमे तो ऐसी चीज़ों की आवश्यकता हैं जिन्हें सुविधा से शरीर पर छिपाया जा सके। “जैसी तुम्हारी इच्छा।”-कुछ निराशा से बाबा बोले- “पर ऐसी विदेशी चीजें कितनी मात्रा में जुटाई जा सकेंगी?”-चलते समय बाबा दस रुपये का एक नोट मेरे हाथ में थमाते हुए वोले–“तुम्हारा आना व्यर्थ ही हुआ । इस समय मेरे पास यही है। तुम्हारे रेल के किराए या रास्ते के भोजन-छादन में कुछ काम आएगा।”–राजनितिक कार्यक्रम में मतभेद होते हुए भी यह बाबा की व्यक्तिगत वत्सलता का चिन्ह था और मैंने उसे आशीर्वाद के रूप में प्रहण कर लिया।

यशपाल की किताब सिंघवालोकन

यशपाल लिखते हैं कि दिल्‍ली लौटकर मैंने भगवती भाई और भैया(चंद्रशेखर आजाद) को यात्रा का परिणाम सुनाया। जिन्ना साहब के सम्बन्ध में बाबा का प्रस्ताव जान भैया झुंझला उठे-“’यह लोग क्या हमे पेशेवर हत्यारा समझते हैं ?” बाद में हम लोग हाथ भर लम्बे देशी पिस्तौल की बात याद कर खूब हंसते रहे। यह बात केवल हंसी की ही नहीं थी। उस देशी पिस्तौल के प्रति बाबा का अनुराग उनके विचार में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग का प्रतिक था। अपने विश्वास के प्रति बाबा की निष्ठा और त्याग के सबन्ध में संदेह का अवसर नहीं था परन्तु सावरकर बंधुओ और हम लोगों के राष्ट्रीय दृष्टिकोण में उतना ही अंतर आ चुका था जितना कि देहाती लोहार के बनाये, गज से भरे जाने वाले पिस्तौल में और मैगजीन में एक साथ आठ गोली भप्कर चलाये जाने वाले पिस्तौल में होता है। हम बिलायत में बने पिस्तौल को छोड़ भारतीय देहाती पिस्तौल पर भरोसा करने के लिए तैयार न थे, केवल इसलिए कि वह स्वदेशी है। हम उस पिस्तौल जैसा कारगर, हो सके तो उससे अच्छा पिस्तौल बना लेना चाहते थे।

निष्कर्ष: यशपाल की मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर से नहीं बल्कि उनके बड़े भाई ‘बाबा सावरकर’ से हुई थी। बाबा सावरकर ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई बंद करने का प्रस्ताव नहीं रखा था। यशपाल ने बाबा सावरकर का जिन्ना को मारने  प्रस्ताव जब चंद्रशेखर आजाद को बताया तो उन्होंने बस इतना कहा कि यह लोग क्या हमे पेशेवर हत्यारा समझते है? चंद्रशेखर ने न सावरकर को हरामखोर कहा, न ही अंग्रेजों से मिला हुआ बताया है। यह दावा भी गलत है कि भगत सिंह ने सावरकर को दो थप्पड़ लगाए

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